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Tuesday, November 30, 2010

भगवान भैरव की साधना

वशीकरण, उच्चाटन, सम्मोहन, स्तंभन, आकर्षण और मारण जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए भैरव साधना की जाती है। इनकी साधना करने से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। जन्म कुंडली में छठा भाव रिपु यानि शत्रु का भाव होता है। लग्न से षष्ठ भाव भी रिपु का है। इस भाव के अधिपति, भाव में स्थित ग्रह और उनकी दृष्टि से शत्रु संबंधी कष्ट होना संभव है। षष्ठस्थ-षष्ठेश संबंधियों को शत्रु बनाता है। यह शत्रुता कई कारणों से हो सकती है। आपकी प्रगति कभी-कभी दूसरों को अच्छी नहीं लगती और वे आपकी प्रगति को प्रभावित करने के लिए तांत्रिक क्रियाओं का सहारा लेकर आपको प्रभावित करते हैं। तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव से व्यवसाय, धंधे में आशानुरूप प्रगति नहीं होती। दिया हुआ रूपया नहीं लौटता, रोग या विघ्न बाधाओं से पीडा अथवा बेकार की मुकदमेबाजी में धन की बर्बादी हो सकती है। इस प्रकार की शत्रु बाधा निवारण के लिए भैरव साधना फलदायी है।
भैरव भगवान शिव के द्वादश स्वरूप हैं। मार्गशीर्ष कृष्णा अष्टमी को भगवान भैरव का प्रादुर्भाव हुआ। भगवान भैरव के तीन प्रमुख रूप हैं- बटुक भैरव, महाकाल भैरव और स्वर्णाकर्षण भैरव। इनमें से भक्तगण बटुक भैरव की ही सर्वाधिक पूजा करते हैं। रविवार और मंगलवार का व्रत करने से भगवान भैरव प्रसन्न होते हैं। तंत्रशास्त्र में अष्ट भैरव का उल्लेख भी मिलता है- असितांग भैरव, रू रू भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत भैरव, कपाल भैरव, भीषण भैरव और संहार भैरव। भगवान भैरव की साधना में ध्यान का अधिक महत्व है। इसी को ध्यान में रखकर सात्विक, राजसिक व तामसिक स्वरूपों का ध्यान किया जाता है। ध्यान के बाद इस मंत्र का जप करने का विधान है।
ऊं ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय
कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।
भगवान भैरव के उक्त मंत्र के जप करने से व्यक्ति शत्रु के समक्ष अप्रतिम पुरूषार्थ से युक्त होता है। ऎसा मानते हैं मुकदमे या कारागार से मुक्ति के लिए भी इस मंत्र की साधना करने से लाभ होता है। भगवान बटुक भैरव के सात्विक स्वरू प का ध्यान करने से आयु में वृद्धि और आधि-व्याधि से मुक्ति मिलती है। इनके राजस स्वरू प का ध्यान करने से विविध अभिलाषाओं की पूर्ति संभव है। इनके तामस स्वरूप का ध्यान करने से शत्रु नाश, सम्मोहन, वशीकरणादि प्रभाव समाप्त होता है। व्याधि से मुक्ति के लिए व भैरव के तामस स्वरूप की साधना करना हितकर है। भैरव अष्टमी पर शत्रु दमन एवं बाधा निवारण व तांçन्त्रक के प्रभाव को नष्ट करने के लिए इनकी साधना शीघ्र फलदायी है। भैरव अष्टमी के दिन शत्रु बाधा से पीडित, कोर्ट-कचहरी संबंधी परेशानी, तंत्र क्रियाओं के प्रभाव को नष्ट करने के लिए भगवान भैरव की आराधना करें। इस दिन भगवान भैरव को प्रसन्न करने के लिए उनके विग्रह को चोला चढाएं, भैरव स्तोत्र या भैरव नामावली का पाठ करे या किसी पंडित से कराएं। उडद की दाल के नैवेद्य भैरव को चढाएं। शत्रु बाधा निवारण के लिए यदि आप चाहें तो भैरव यंत्र की साधना भी कर सकते हैं। भैरव यंत्र का निर्माण भैरव अष्टमी के दिन तांबे या भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही से अनार की कलम से कर लें। यंत्र निर्माण के बाद इसका विधि पूर्वक पूजन करके प्राण-प्रतिष्ठा करें। स्वयं यंत्र नहीं बना सके तो इसका निर्माण किसी पंडित से करा लें।

1 comment:

  1. Yadi apke lie sambhav ho to Bhagwan Bhairav se related stotra mantra etc bhi publish kar dijie.Exactly kya keyword search karna hai ye pata nahi hota.Mere jaise log bhoole bhatke idhar pahunch jate hain to gyan pa jae hain.

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